यदि आपको भी शिव तांडव स्तोत्र का अनुभव है और आप इसका गुनगुनाना करना चाहते हैं, लेकिन आपको संस्कृत शब्दों को समझने और उच्चारण करने में कठिनाइयां आ रही हैं, तो आप सही स्थान पर हैं। इस पोस्ट में हम आपको शिव तांडव स्तोत्र को सरल भाषा में प्रस्तुत करेंगे, जिसे आप आसानी से समझ सकेंगे।
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अगर आप किसी असाध्य रोग से पीड़ित हैं, मानसिक तनाव से ग्रस्त हैं, किसी डर का सामना कर रहे हैं, या आपको किसी तंत्र-मंत्र से परेशानी हो रही है, तो आपको शिव तांडव स्तोत्र के 17 श्लोकों का पाठ करना चाहिए। इससे भगवान शिव प्रत्येक प्रकार की समस्याओं का समाधान करते हैं और आपकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
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भगवान शिव की आपकी भक्ति और आदर्श जीवन की सफलता में सहायक हो।
हर हर महादेव!
| सार्थशिवताण्डवस्तोत्रम् |
जटा-टवी-गलज्-जल-प्रवाह-पावित-स्थले
गलेऽव-लम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग-तुङ्ग-मालिकाम्
डमड्-डमड्-डमड्-डमन्-निनाद-वड्-डमर्वयं
चकार चण्ड-ताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥1॥जटा-कटाह-सम्भ्रम-भ्रमन्-निलिम्प निर्झरी
विलोल-वीचि-वल्लरी-विराज-मान मूर्धनि।
धगद्-धगद्-धगज्-ज्वलल्-ललाट-पट्ट पावके
किशोर-चन्द्र-शेखरे रतिः प्रति-क्षणं मम: ॥2॥धरा-धरेन्द्र-नन्दिनी-विलास-बन्धु बन्धुर
स्फुरद्-दिगन्त-सन्तति-प्रमोद-मान मानसे।
कृपा-कटाक्ष-धोरणी-निरुद्ध-दुर्धरा-पदि
क्वचिद्-दिगम्बरे मनो विनोद-मेतु वस्तुनि ॥3॥जटा भुजङ्गपिङ्गल स्फुरत्फणामणिप्रभा
कदम्बकुङ्कुमद्रव प्रलिप्तदिग्व धूमुखे।
मदान्धसिन्धु रस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥4॥सहस्र-लोचन-प्रभृत्य-शेष-लेख-शेखर
प्रसून-धूलि-धोरणी-विधू-सराङ्घ्रि-पीठ-भूः।
भुजङ्ग-राज-मालया निबद्ध-जाट-जूटक:
श्रियै चिराय जायतां चकोर-बन्धु-शेखरः ॥5॥ललाट-चत्वर-ज्वलद्-धनञ्जय-स्फुलिङ्गभा
निपीत-पञ्च-सायकं नमन्-निलिम्प-नायकम्।
सुधा-मयूख-लेखया विराज-मान-शेखरं
महा-कपालि सम्पदे शिरो जटाल-मस्तुनः ॥6॥कराल-भाल-पट्टिका-धगद्-धगद्-धगज्-ज्वलद्
धनञ्जया-हुती-कृत-प्रचण्ड-पञ्च-सायके।
धरा-धरेन्द्र-नन्दिनी-कुचाग्र-चित्र-पत्रक-
प्रकल्प-नैक-शिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥7॥नवीन-मेघ-मण्डली-निरुद्ध-दुर्धर-स्फुरत्
कुहू-निशीथिनी-तमः-प्रबन्ध-बद्ध-कन्धरः।
निलिम्प-निर्झरी-धरस्-तनोतु कृत्ति-सिन्धुरः
कला-निधान-बन्धुरः श्रियं जगद्-धुरन्धरः ॥8॥प्रफुल्ल-नील-पङ्कज-प्रपञ्च-कालिम-प्रभा
वलम्बि-कण्ठ-कन्दली-रुचि-प्रबद्ध-कन्धरम्।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छि-दान्ध-कच्छिदं तमन्त-कच्छिदं भजे ॥9॥अगर्व-सर्व-मङ्गला-कला-कदम्ब मञ्जरी
रस-प्रवाह-माधुरी-विजृम्भणा-मधु-व्रतम्।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्त-कान्ध-कान्तकं तमन्त-कान्तकं भजे ॥10॥जयत्व-दभ्र-विभ्रम-भ्रमद्-भुजङ्ग मश्वस
द्विनिर्गमत्-क्रम-स्फुरत्-कराल-भाल-हव्य-वाट्
धिमिद्-धिमिद्-धिमिद्-ध्वनन्-मृदङ्ग-तुङ्ग-मङ्गल
ध्वनि-क्रम-प्रवर्तित-प्रचण्ड-ताण्डवः शिवः ॥11॥दृषद्-विचित्र-तल्पयोर्-भुजङ्ग-मौक्ति-कस्रजोर्
गरिष्ठ-रत्न-लोष्ठयोः सुहृद्-विपक्ष-पक्ष-योः।
तृणारविन्द-चक्षुषोः प्रजा-मही-महेन्द्रयोः
समं-प्रवृत्ति-कः कदा सदा-शिवं भजाम्यहम् ॥12॥कदा निलिम्प-निर्झरी-निकुञ्ज-कोटरे वसन्
विमुक्त-दुर्मतिः सदा शिरःस्थ-मञ्जलिं वहन्।
विलोल-लोल-लोचनो ललाम-भाल-लग्नकः
शिवेति मन्त्र मुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥13॥निलिम्प नाथ-नागरी कदम्ब मौल-मल्लिका
निगुम्फ-निर्भक्षरन्म धूष्णिका-मनोहरः।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनीं-महनिशं
परिश्रय परं पदं तदङ्ग-जत्विषां चयः॥14॥प्रचण्ड वाड-वानल प्रभा-शुभ-प्रचारणी
महा-अष्टसिद्धि कामिनी जनावहूत जल्पना।
विमुक्त वाम लोचनो विवाह-कालिक-ध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्॥15॥इमं हि नित्य-मेव-मुक्त-मुत्त-मोत्तमं स्तवं
पठन् स्मरन् ब्रुवन्-नरो विशुद्धि-मेति सन्ततम्।
हरे गुरौ सुभक्ति-माशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिन्तनम् ॥16॥पूजा-वसान-समये दश-वक्त्र-गीतं
यः शम्भु-पूजन-परं पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथ-गजेन्द्र-तुरङ्ग-युक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भुः ॥17॥
इस श्लोक का अर्थ है:
- “जटा-टवी-गलज्-जल-प्रवाह-पावित-स्थले गलेऽव-लम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग-तुङ्ग-मालिकाम् डमड्-डमड्-डमड्-डमन्-निनाद-वड्-डमर्वयं चकार चण्ड-ताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥1॥”
इस श्लोक का अर्थ है:
“जटा-टवी-गलज्-जल-प्रवाह-पावित-स्थले” – जिस जगह पर भगवान शिव के जटाओं की अलङ्करण जल के धारा से पवित्र होते हैं,
“गलेऽव-लम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग-तुङ्ग-मालिकाम्” – जिनके गले पर भगवान शिव की सर्पों की ऊंची माला लटकी होती है,
“डमड्-डमड्-डमड्-डमन्-निनाद-वड्-डमर्वयं” – जिनके वदन से डमड्-डमड् ध्वनि हो रही है, जो डमड्-डमड् ध्वनि का कारण है,
“चकार चण्ड-ताण्डवं” – वह भगवान शिव चण्ड ताण्डव नृत्य कर रहे हैं,
“तनोतु नः शिवः शिवम् ॥1॥” – हमारे ऊपर भगवान शिव हमें शुभ दें।
इस श्लोक में भगवान शिव के ध्यान में प्रवेश करने की भावना और उनके विशेष आदिशक्ति का महत्वपूर्ण वर्णन किया गया है। यह श्लोक भगवान शिव की महिमा और महाशक्ति का माहौल प्रस्तुत करता है।
2. “जटा-कटाह-सम्भ्रम-भ्रमन्-निलिम्प निर्झरी विलोल-वीचि-वल्लरी-विराज-मान मूर्धनि। धगद्-धगद्-धगज्-ज्वलल्-ललाट-पट्ट पावके किशोर-चन्द्र-शेखरे रतिः प्रति-क्षणं मम: ॥2॥”
इस श्लोक का अर्थ है:
“जटा-कटाह-सम्भ्रम-भ्रमन्-निलिम्प निर्झरी” – भगवान शिव के जटाओं के आकर्षक रूप के कारण जब झूलते हैं तो वे झूलती हुई जलधारा की तरह दिखाई देते हैं,
“विलोल-वीचि-वल्लरी-विराज-मान मूर्धनि” – जो भगवान के माथे पर झूलते हैं, वे शिव के माथे पर मनोहारी फूलमाला की तरह सुंदर दिखते हैं,
“धगद्-धगद्-धगज्-ज्वलल्-ललाट-पट्ट पावके” – जिनके माथे के भीषण ताप से माथे की पट्टियों को जलाने वाले आग की तरह दगदगाते हैं,
“किशोर-चन्द्र-शेखरे रतिः प्रति-क्षणं मम:” – वह किशोर चंद्र शेखर, जिनके माथे पर चंद्रमा की तरह सुंदरता है, वह मेरे हर पल में आकर्षित होते हैं।
इस श्लोक में भगवान शिव के विशेष आकर्षण और उनकी महिमा का वर्णन किया गया है।
3. धरा-धरेन्द्र-नन्दिनी-विलास-बन्धु बन्धुर,
- धरा: पृथ्वी
- धरेन्द्र: भगवान शिव
- नन्दिनी: पार्वती, शिव की पत्नी
- विलास: खिलवाड़
- बन्धु: सखा
- बन्धुर: मित्र अर्थ: इस श्लोक में भगवान शिव के द्वारका, यानी पृथ्वी, जो उनकी पत्नी पार्वती के साथ खिलवाड़ कर रही है, और विशेष आनंद में रमण कर रही है, का वर्णन किया जा रहा है। इसके साथ ही, भगवान शिव के दोस्त और मित्र भी उनके साथ हैं जो उनके निरुपम कृपा और दया के लाभान्वित हैं।
स्फुरद्-दिगन्त-सन्तति-प्रमोद-मान मानसे।
- स्फुरद्: चमकने वाली
- दिगन्त: सभी दिशाओं में
- सन्तति: सदा
- प्रमोद: खुशी
- मान मानसे: मेरे मन में अर्थ: यहाँ पृथ्वी का वर्णन किया जा रहा है कि वह सभी दिशाओं में अपने साक्षर चमकती है और मेरे मन में हमेशा खुशी और गर्व का आभास देती है।
कृपा-कटाक्ष-धोरणी-निरुद्ध-दुर्धरा-पदि,
- कृपा-कटाक्ष: अनुग्रह और कृपा की दृष्टि
- धोरणी: धारण करने वाली
- निरुद्ध: नियंत्रित
- दुर्धरा: अत्यन्त कठिन
- पदि: पृथ्वी पर अर्थ: इस श्लोक में भगवान शिव के द्वारका, यानी पृथ्वी, जिन्होंने अनुग्रह की दृष्टि और कृपा की दृष्टि को नियंत्रित किया है और जो अत्यन्त कठिन नियमों का पालन कर रही है।
क्वचिद्-दिगम्बरे मनो विनोद-मेतु वस्तुनि॥3॥
- क्वचिद्-दिगम्बरे: कभी-कभी नग्न रूप में
- मनो विनोद-मेतु: मेरे मन के आनंद के लिए
- वस्तुनि: आपकी
अर्थ: इस श्लोक में यह कहा जा रहा है कि कभी-कभी भगवान शिव अपने नग्न रूप में हमारे मन के आनंद के लिए प्रकट होते हैं।
4. जटा भुजङ्ग पिङ्गल स्फुरत्फणामणि प्रभा,
- जटा: झटिति बंधी हुई
- भुजङ्ग: नाग, सर्प
- पिङ्गल: गौरीशंकरी, माता पार्वती
- स्फुरत: चमकती हुई
- फणामणि: हार की बनी मणि
- प्रभा: चमक, प्रकाश
अर्थ: इस श्लोक में यह कहा जा रहा है कि माता पार्वती के झटिति बंधी हुई जटाओं में वह चमकती हुई हार की बनी मणियों की तरह चमक रही हैं, जो कि सर्पों के शरीर की तरह दिखते हैं।
कदम्बकुङ्कुमद्रव प्रलिप्तदिग्व धूमुखे,
- कदम्ब: कदम्ब की फूल
- कुङ्कुम: कुङ्कुम, सुंदर रंग
- द्रव: घूस, गोंद
- प्रलिप्त: लगा हुआ
- दिग्व: दिग्विजय
- धूमुखे: अग्नि के मुख वाली
अर्थ: इस श्लोक में यह कहा जा रहा है कि माता पार्वती के शरीर पर कदम्ब की फूलों का सुंदर रंग कुङ्कुम लगा हुआ है, जो अग्नि के मुख जैसा दिखता है, और वह दिग्विजय के समय गोंद से भी लिपट जाता है।
मदान्ध सिन्धु रस्फुरत्त्वगुत्तरीय मेदुरे,
- मदान्ध: भव भ्रांति में डूबा हुआ
- सिन्धु: समुंदर
- रस्फुरत: ब्लिंकिंग, चमकता हुआ
- त्वगुत्तरीय: ऊपरी शरीर
- मेदुरे: स्तन के पास
अर्थ: इस श्लोक में यह कहा जा रहा है कि माता पार्वती के शरीर के ऊपरी भाग पर, जो कि समुंदर की ब्लिंकिंग चमकता हुआ है, वह भव भ्रांति में डूबे हुए मनुष्यों के लिए एक प्रकार की मधुर भावना का स्रोत है।
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि॥4॥
- मनो विनोद: मनोरंजन, मनोबल
- अद्भुतं: अद्वितीय, चमत्कारी
- बिभर्तु: प्रकट हो
- भूतभर्तरि: भूतों के पालने वाली
अर्थ: इस श्लोक में पार्वती माता से प्रार्थना की जा रही है कि वह मनोरंजन और मनोबल का अद्वितीय स्रोत हों, और चमत्कारी रूप में भूतों का पालन करें।
5. सहस्र-लोचन-प्रभृत्य-शेष-लेख-शेखर,
- सहस्र-लोचन: हजार आंखों वाले
- प्रभृत्य: आदि, संपूर्ण
- शेष-लेख-शेखर: शेष नाग की तरह केशवी (भगवान विष्णु) के शिरस्तर पर
अर्थ: इस श्लोक में यह कहा जा रहा है कि भगवान शिव, सहस्र आंखों वाले होते हैं, वह संपूर्ण सृष्टि के आदि हैं और अपने केशवी रूप में शेष नाग के शिरस्तर पर अवस्थित हैं।
प्रसून-धूलि-धोरणी-विधू-सराङ्घ्रि-पीठ-भूः,
- प्रसून: फूलों की
- धूलि: धूल, प्रकाश
- धोरणी: अर्धचंद्रा, सिर
- विधू: विस्तार
- सराङ्घ्रि: शिरस्तर, मस्तक
- पीठ: पीठ, पिठ
अर्थ: इस श्लोक में यह कहा जा रहा है कि भगवान शिव के सिर पर फूलों की धूल से युक्त अर्धचंद्रा अर्थात सीसे की अपनी विशाल पीठ है।
भुजङ्ग-राज-मालया निबद्ध-जाट-जूटक:
- भुजङ्ग-राज-मालया: नागराज की माला से
- निबद्ध: बांधा हुआ
- जाट-जूटक: ब्रह्मा के जटाधारी रूप से
अर्थ: इस श्लोक में यह कहा जा रहा है कि भगवान शिव नागराज की माला से बांधे हुए हैं और वे ब्रह्मा के जटाधारी रूप से प्रकट होते हैं।
श्रियै चिराय जायतां चकोर-बन्धु-शेखरः ॥5॥
- श्रियै: श्रीलक्ष्मी
- चिराय: सदा
- जायतां: जय हो
- चकोर-बन्धु-शेखरः: चकोर पक्षियों के मित्र और श्रीकृष्ण
अर्थ: इस श्लोक में यह कहा जा रहा है कि भगवान शिव हमें सदा धन्य करें और वे चकोर पक्षियों के मित्र और श्रीकृष्ण हैं, जिन्होंने श्रीलक्ष्मी को पाने के लिए अपनी तपस्या की थी।
6. ललाट-चत्वर-ज्वलद्-धनञ्जय-स्फुलिङ्गभा,
- ललाट-चत्वर: भूषणों के चारों ओर (ललाट पर)
- ज्वलद्-धनञ्जय-स्फुलिङ्गभा: ज्वालामुखि नामक सुत धनञ्जय की तरह चमकीली
अर्थ: इस श्लोक में भगवान शिव की माता ज्वालामुखी की तरह की चमकीली ललाट पर भूषणों की चारों ओर चमक रही है।
निपीत-पञ्च-सायकं नमन्-निलिम्प-नायकम्।
- निपीत-पञ्च-सायकं: पाँच तीरों से घिरा हुआ
- नमन्-निलिम्प-नायकम्: नायकों के नायक को नमस्कार
अर्थ: इस श्लोक में यह कहा जा रहा है कि भगवान शिव पाँच तीरों से घिरे हुए हैं और वे नायकों के नायक हैं, उन्हें नमस्कार है।
सुधा-मयूख-लेखया विराज-मान-शेखरं
- सुधा-मयूख-लेखया: अमृत के धाराओं से
- विराज-मान-शेखरं: जटाओं से सजीव हुआ मान अर्थात भगवान
अर्थ: इस श्लोक में यह कहा जा रहा है कि भगवान शिव अमृत के धाराओं से सजीव हुए हैं और उनके जटाओं पर अमृत की धाराएं विराजमान हैं।
महा-कपालि सम्पदे शिरो जटाल-मस्तुनः ॥6॥
- महा-कपालि: बड़े डमरूधारी (शिव)
- सम्पदे: आवागमन
- शिरो जटाल-मस्तुनः: उनके मस्तक पर जटाओं की अवशोषणा हो
अर्थ: इस श्लोक में यह कहा जा रहा है कि भगवान शिव बड़े डमरूधारी हैं और उनके मस्तक पर जटाओं की आवागमन हो।
7. कराल-भाल-पट्टिका-धगद्-धगद्-धगज्-ज्वलद्
- कराल-भाल-पट्टिका: भयंकर मुख और बाहु का छाया
- धगद्-धगद्-धगज्-ज्वलद्: बहुत तेज और धड़कने वाला है
अर्थ: इस श्लोक में यह कहा जा रहा है कि भगवान शिव के मुख और बाहु भयंकर और उनकी धड़कन बहुत तेज है।
धनञ्जया-हुती-कृत-प्रचण्ड-पञ्च-सायके।
- धनञ्जया-हुती: धनञ्जय (अर्जुन) द्वारा जलाई गई हवन कुण्ड
- कृत-प्रचण्ड-पञ्च-सायके: पाँच तीरों वाले अत्यंत उग्र तीर के धनुष्य वाले
अर्थ: इस श्लोक में यह कहा जा रहा है कि भगवान शिव का धनुष अर्जुन द्वारा जलाई गई हवन कुण्ड की तरह है और उनके पास पाँच तीरों वाला अत्यंत उग्र धनुष है।
धरा-धरेन्द्र-नन्दिनी-कुचाग्र-चित्र-पत्रक-
- धरा-धरेन्द्र-नन्दिनी: पर्वती जी, धरा के राजा का बेटा
- कुचाग्र-चित्र-पत्रक-: जबकि उनके सीने पर हैं चित्रकला से बने चित्र
अर्थ: इस श्लोक में यह कहा जा रहा है कि पर्वती जी के सीने पर चित्रकला से बने चित्र हैं और वे धरा के राजा के बेटे हैं।
प्रकल्प-नैक-शिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥7॥
- प्रकल्प-नैक-शिल्पिनि: विचित्र और अनेक प्रकार की कलाओं की
- त्रिलोचने: तीन नेत्रों वाले भगवान शिव
- रतिर्मम: मेरी भक्ति और प्रेम
अर्थ: इस श्लोक में यह कहा जा रहा है कि भगवान शिव की तीन नेत्रों वाले होने के कारण वे अनेक प्रकार की विचित्र कलाओं की कला के प्रति रत हैं, और मेरी भक्ति और प्रेम भी उनकी ओर हैं।
8. नवीन-मेघ-मण्डली-निरुद्ध-दुर्धर-स्फुरत्
- नवीन-मेघ-मण्डली: नए मेघ के मंडल में
- निरुद्ध-दुर्धर-स्फुरत्: सुना है आक्रमण रोकने वाले असुरों के लिए दुर्धर्ष स्थान में चमकते हैं
अर्थ: इस श्लोक में यह कहा जा रहा है कि भगवान शिव नए मेघ के मंडल में आक्रमण रोकने वाले असुरों के लिए दुर्धर्ष स्थान में चमकते हैं।
कुहू-निशीथिनी-तमः-प्रबन्ध-बद्ध-कन्धरः।
- कुहू-निशीथिनी: कुहू नक्षत्र की आत्मा का स्थान
- तमः-प्रबन्ध-बद्ध-कन्धरः: अंधकार के प्रभाव में जकड़े हुए शिर के पृष्ठ के
अर्थ: इस श्लोक में यह कहा जा रहा है कि भगवान शिव कुहू नक्षत्र की आत्मा का स्थान है और वे अंधकार के प्रभाव में जकड़े हुए हैं।
निलिम्प-निर्झरी-धरस्-तनोतु कृत्ति-सिन्धुरः
- निलिम्प-निर्झरी: लिली की तरह सुंदर और बहती हुई नदी
- कृत्ति-सिन्धुरः: धरती का सिन्धु (राजा)
अर्थ: इस श्लोक में यह कहा जा रहा है कि भगवान शिव के शिर पर जैसे सुंदर और बहती हुई नदी बहती है, वैसे ही धरती पर उनके बल से जीवन का सिन्धु होता है।
कला-निधान-बन्धुरः श्रियं जगद्-धुरन्धरः ॥8॥
- कला-निधान-बन्धुरः: कला का खजाना और मित्र
- श्रियं जगद्-धुरन्धरः: जगत के धरण के पालनहार
अर्थ: इस श्लोक में यह कहा जा रहा है कि भगवान शिव कला का खजाना है और वे जगत के पालनहार हैं।
9. प्रफुल्ल-नील-पङ्कज-प्रपञ्च-कालिम-प्रभा
- प्रफुल्ल-नील-पङ्कज: खिले हुए नीलकमल
- प्रपञ्च-कालिम-प्रभा: जगत के काल की प्रकाशिनी
अर्थ: इस श्लोक में यह कहा जा रहा है कि भगवान शिव की छाया खिले हुए नीलकमल के समान है, जो जगत के काल की प्रकाशिनी है।
वलम्बि-कण्ठ-कन्दली-रुचि-प्रबद्ध-कन्धरम्।
- वलम्बि-कण्ठ-कन्दली: गले में लटकते हुए कान की बाली
- रुचि-प्रबद्ध-कन्धरम्: तेजी से बढ़ते हुए भुजों की बाली
अर्थ: इस श्लोक में यह कहा जा रहा है कि भगवान शिव के गले में लटकती हुई कान की बाली और तेजी से बढ़ती हुई भुजों की बाली बहुत ही रोचक हैं।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
- स्मरच्छिदं: व्यक्ति के स्मरण को छिपाने वाले
- पुरच्छिदं: पुरोहित के छिपाने वाले
- भवच्छिदं: संसार के छिपाने वाले
- मखच्छिदं: यज्ञ के छिपाने वाले
अर्थ: इस श्लोक में यह कहा जा रहा है कि भगवान शिव व्यक्तिगत स्मरण को छिपाने वाले हैं, पुरोहित के छिपाने वाले हैं, संसार को छिपाने वाले हैं और यज्ञ को छिपाने वाले हैं।
गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ॥9॥
- गजच्छिदान्धकच्छिदं: गजासुर को मारने वाले
- तमन्तकच्छिदं: यम को मारने वाले
अर्थ: इस श्लोक में यह कहा जा रहा है कि भगवान शिव गजासुर को मारने वाले हैं और उन्होंने यमराज को भी मार डाला है।
10 अगर्व-सर्व-मङ्गला-कला-कदम्ब मञ्जरी
- अगर्व-सर्व-मङ्गला: सभी मङ्गल की अवशेषा
- कला-कदम्ब मञ्जरी: कला के कदम्ब पुष्पों की छाया
अर्थ: इस श्लोक में यह कहा जा रहा है कि भगवान शिव की छाया सभी मङ्गल की अवशेषा है और उनके कदम्ब पुष्पों की छाया है।
रस-प्रवाह-माधुरी-विजृम्भणा-मधु-व्रतम्
- रस-प्रवाह-माधुरी: रस की प्रवाहमय माधुरी
- विजृम्भणा-मधु-व्रतम्: विकसित होने वाला मधु व्रत
अर्थ: इस श्लोक में यह कहा जा रहा है कि भगवान शिव का व्रत रस की प्रवाहमय माधुरी के समान है, जो विकसित होता है।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
- स्मरान्तकं: स्मरण का अंत करने वाले
- पुरान्तकं: संसार का अंत करने वाले
- भवान्तकं: भवन का अंत करने वाले
- मखान्तकं: यज्ञ का अंत करने वाले
अर्थ: इस श्लोक में यह कहा जा रहा है कि भगवान शिव स्मरण का अंत करते हैं, संसार का अंत करते हैं, भवन का अंत करते हैं और यज्ञ का अंत करते हैं।
गजान्त-कान्ध-कान्तकं तमन्त-कान्तकं भजे ॥10॥
- गजान्त-कान्ध-कान्तकं: गजासुर को मारने वाले
- तमन्त-कान्तकं: यम को मारने वाले
अर्थ: इस श्लोक में यह कहा जा रहा है कि भगवान शिव गजासुर को मारने वाले हैं और उन्होंने यमराज को भी मार डाला है।
11 जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस
- जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस: जो बादलों की धारा में छुपे हुए भुजङ्ग और अश्व के साथ जैत्री होते हैं
अर्थ: इस श्लोक में यह कहा जा रहा है कि भगवान शिव जैसे जैत्री बादलों की धारा में छुपे हुए भुजङ्ग और अश्वों के साथ विजयी होते हैं।
द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट्
- द्विनिर्गमत्क्रम: जल निकलने वाले
- स्फुरत्करालभाल: भयंकर फुलादिक के साथ जो विकसित होते हैं
- हव्यवाट: हवन की आग
अर्थ: इस श्लोक में यह कहा जा रहा है कि भगवान शिव के जल निकलने वाले चिरंजीवी तांडव हैं, जो भयंकर फुलादिक के साथ विकसित होते हैं, और उनकी आग हवन की आग के समान है।
धिमिद्धिमिद्धिमिद्ध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल
- धिमिद्धिमिद्धिमिद्ध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल: मृदंग और ऊँट के ध्वनि
अर्थ: इस श्लोक में यह कहा जा रहा है कि भगवान शिव के तांडव के ध्वनि का अद्वितीय मधुर मृदंग और ऊँट के ध्वनि के समान है।
ध्वनिक्रमप्रवर्तितप्रचण्डताण्डवः शिवः
- ध्वनिक्रमप्रवर्तित: ध्वनि क्रम से विकसित होता है
- प्रचण्डताण्डवः: भयंकर ताण्डव है
अर्थ: इस श्लोक में यह कहा जा रहा है कि भगवान शिव का तांडव भयंकर ध्वनियों के साथ विकसित होता है।
12 दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्
- दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्: अद्वितीय और अद्वितीय रूपों के साथ फैले हुए भुजङ्ग और मोती की हारें
अर्थ: इस श्लोक में यह कहा जा रहा है कि भगवान शिव के बांहों में अद्वितीय और अद्वितीय रूपों के साथ फैले हुए भुजङ्ग और मोती की हारें हैं।
गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः
- गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः: सर्वोत्तम रत्नों के ढेर
- सुहृद्विपक्षपक्षयोः: मित्रों और शत्रुओं के पक्षों की ओर से
अर्थ: इस श्लोक में यह कहा जा रहा है कि भगवान शिव के पास सर्वोत्तम रत्नों का ढेर है, और उनके पक्ष से मित्रों और शत्रुओं की ओर से हैं।
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
- तृणारविन्दचक्षुषोः: घास की तरह के कन्दे वाले नेत्रों वाले
- प्रजामहीमहेन्द्रयोः: जीवों के सृजनहार और महासागर के सम्राट
अर्थ: इस श्लोक में यह कहा जा रहा है कि भगवान शिव के कन्दे वाले नेत्रों के माध्यम से वह सभी प्राणियों के सृजनहार और महासागर के सम्राट हैं।
समंप्रवृत्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहम्
- समंप्रवृत्तिकः: सदा प्रवृत्त होने वाले
- कदा: कब
- सदाशिवं भजाम्यहम्: सदा भगवान शिव की भक्ति करता हूँ
अर्थ: इस श्लोक में यह कहा जा रहा है कि मैं कब से हमेशा भगवान शिव की भक्ति कर रहा हूँ।
13 कदा निलिम्प-निर्झरी-निकुञ्ज-कोटरे वसन्
- कदा: कब
- निलिम्प-निर्झरी: कमल के फूलों की धारा
- निकुञ्ज-कोटरे: जंगल के किनारे
- वसन्: बसते हुए
- विमुक्त-दुर्मतिः: बुरी मन्ने वाला, पाप से मुक्त
- सदा: सदा
- शिरःस्थ-मञ्जलिं वहन्: मस्तक पर हाथ की प्रार्थना को लिए हुए
- विलोल-लोल-लोचनो: हिलते हुए आंखों वाला
- ललाम-भाल-लग्नकः: ललाट पर मांसल फूल की माला पहने हुए
- शिवेति मन्त्र मुच्चरन्: ‘शिव’ इस मंत्र का उच्चारण करते हुए
- कदा सुखी भवाम्यहम्: कब से मैं खुश होता हूँ
अर्थ: इस श्लोक में कवि भगवान शिव की ध्यान और भक्ति में लगे भक्त की भावनाओं का वर्णन कर रहे हैं। उनका मस्तक कमलों की धारा के पास रहता है और वह बुरी मन्ने वाला है, पापों से मुक्त है। उनकी आंखें हिलती हुई हैं, और उनकी ललाट पर मांसल फूलों की माला है। वे शिव मंत्र का उच्चारण करते हुए सदा खुश रहते हैं।
14 निलिम्प नाथ-नागरी कदम्ब मौल-मल्लिका
- निलिम्प नाथ-नागरी: कमलों के नाथ, नागरी (भवन) की
- कदम्ब: कदम्ब के पेड़
- मौल-मल्लिका: मौल (मस्तक) पर माला बनाई हुई
- निगुम्फ-निर्भक्षरन्म: निगुम्फ फूलों से भरपूरे
- धूष्णिका-मनोहरः: धूसणी वाली, मनोहर
- तनोतु नो मनोमुदं: हमारे मन को आनंदित करें
- विनोदिनीं-महनिशं: जो दिन-रात हमें आनंदित करे
- परिश्रय: आश्रय, संरक्षण
- परं पदं: परम पद
- तदङ्ग-जत्विषां चयः: उनके जटाओं का चयन करें
अर्थ: इस श्लोक में कवि भगवान शिव की ध्यान और भक्ति करने वाले भक्त की स्थिति का वर्णन कर रहे हैं। वे कमलों के नाथ हैं और उनके मस्तक पर माला बनी हुई है। उनकी जटाओं में कदम्ब के पेड़ों की फूलों की माला लटकी हुई है। उनके आस-पास फूलों की गंध फैली हुई है, और वे बहुत ही मनोहर हैं। वे हमारे मन को आनंदित करते हैं और हमें दिन-रात आश्रय देते हैं। उनके परम पद का चयन करने का आशीर्वाद मिले।
15 प्रचण्ड वाडवानल प्रभा-शुभ-प्रचारणी
- प्रचण्ड वाडवानल: तेज आग, जो बड़ी ही उर्वरा हो
- प्रभा-शुभ-प्रचारणी: प्रकाशमान, भलाई का प्रचार करने वाली
- महा-अष्टसिद्धि कामिनी: अष्टसिद्धियों की देवी, जो कामनाओं को पूर्ण करती है
- जनावहूत जल्पना: जनों की आवाज, बहुत सारी चर्चाएँ करनेवाली
- विमुक्त वाम लोचनो: बाएं आँख वाली, जिनकी आँखें फिर से मुक्त हो गईं
- विवाह-कालिक-ध्वनिः: विवाह की बेला में गूंथी जाने वाली ध्वनि
- शिवेति मन्त्रभूषगो: “शिव” मन्त्र के भूषणवाले
- जगज्जयाय जायताम: जगत् में विजयी हो, विजय प्राप्त हो
अर्थ: इस श्लोक में कवि भगवान शिव की महाकाली रूप का वर्णन कर रहे हैं। वे तेज आग की तरह प्रकाशमान हैं और भलाई का प्रचार करते हैं। वे अष्टसिद्धियों की देवी हैं और सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाली हैं। उनकी आवाज सबकी सुनती है और वे बहुत सारी चर्चाएँ करती हैं। उनकी बाएं आँख फिर से मुक्त हो गई है, और वे विवाह की बेला में गूंथी जाने वाली ध्वनि हैं। वे “शिव” मन्त्र के भूषणवाले हैं और वे जगत् में विजयी हों।
16 इमं हि नित्य-मेव-मुक्त-मुत्त-मोत्तमं स्तवं
- इमं: इस
- हि: वाक्य में बताने वाला है कि
- नित्य-मेव: हमेशा, सदैव
- मुक्त-मुत्त-मोत्तमं: सबसे उच्च मुक्ति, मोक्ष को
- स्तवं: स्तोत्र को
- पठन्: पढ़कर
- स्मरन्: याद करके
- ब्रुवन्: बोलकर
- नरो: व्यक्ति
- विशुद्धि-मेति: शुद्धि प्राप्त करता है
- सन्ततम्: हमेशा
हरे गुरौ सुभक्ति-माशु याति नान्यथा गतिं
- हरे: हर, श्रीकृष्ण
- गुरौ: गुरु, प्रभु
- सुभक्ति-माशु: श्रद्धालु का भक्ति तेजी से
- याति: पहुँचता है
- नान्यथा: किसी अन्य तरीके से
- गतिं: प्राप्ति, मार्ग
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिन्तनम्
- विमोहनं: भ्रमण
- हि: वाक्य में बताने वाला है कि
- देहिनां: जीवों का
- सुशङ्करस्य: भगवान शिव के
- चिन्तनम्: ध्यान, सोचना
अर्थ: यह स्तोत्र हमेशा मुक्ति को सबसे उच्च मानने वाला है। इसे पढ़ने, स्मरण करने और बोलने वाला व्यक्ति हमेशा शुद्धि प्राप्त करता है। श्रीकृष्ण के प्रति श्रद्धालु का भक्ति तेजी से बढ़ता है और किसी अन्य तरीके से मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती। देहिनों का भ्रमण और भगवान शिव के चिंतन से ही मोह दूर होता है।
17 पूजा-वसान-समये दश-वक्त्र-गीतं
- पूजा-वसान-समये: पूजा के समय
- दश-वक्त्र-गीतं: दशवक्त्र (दस हेड़ों वाले) भगवान का गीत
- यः: जो कोई
- शम्भु-पूजन-परं: भगवान शिव की पूजा में लगे रहने वाला
- पठति: पढ़ता है
- प्रदोषे: प्रदोष काल (शिव पूजा का विशेष समय)
तस्य स्थिरां रथ-गजेन्द्र-तुरङ्ग-युक्तां
- तस्य: उसके (भगवान शिव के)
- स्थिरां: स्थिर
- रथ-गजेन्द्र-तुरङ्ग-युक्तां: रथ, हाथी, और घोड़े से युक्त
- लक्ष्मीं: लक्ष्मी (धन, समृद्धि, श्री)
- सदैव: हमेशा
- सुमुखिं: सुंदर मुखवाली
- प्रददाति: प्रदान करते हैं
- शम्भुः: भगवान शिव
अर्थ: जो कोई पूजा के समय दसवक्त्र भगवान का गीत पढ़ता है, वह भगवान शिव की पूजा में लगे रहने वाले होता है। इसके परिणामस्वरूप, वह स्थिर, रथ, हाथी, और घोड़ों से युक्त, सुंदर मुखवाली लक्ष्मी को हमेशा प्रदान करते हैं, और इसे हमेशा सुखी बनाते हैं।
शिव तांडव स्तोत्र क्या है –
शिव तांडव स्तोत्र में भगवान शिव की स्तुति में गायी गई 17 संस्कृत श्लोक है, जो लंकापति रावण ने तब रची थी जब भगवान शिव तांडव (क्रोधित) कर रहे थे। शिव तांडव स्तोत्र में भगवान शिव का रूद्र रूप का बखान रावण द्वारा किया गया है, इसलिए इसे ‘रावण रचित शिव तांडव स्तोत्र’ भी कहते है।
शिव तांडव स्तोत्र की उत्पत्ति कैसे हुई –
शिव तांडव स्तोत्र को रावण तांडव स्तोत्र के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इस स्तोत्र की रचना रावण द्वारा की गई है। इस स्तोत्र में रावण ने 17 श्लोंको से भगवान शिव की महिमा गाई है। जब एक बार अहंकारवश रावण नें कैलाश को उठाने का प्रयत्न किया तो भगवान शिव ने अपने अंगूठे से पर्वत को दबाकर स्थिर कर दिया। जिससे रावण का हाथ पर्वत के नीचे दब गया। तब पीड़ा में रावण ने भगवान शिव की स्तुति गाई। रावण द्वारा गाई गई, यही स्तुति शिव तांडव स्तोत्र के नाम से जानी जाती है।
शिव तांडव स्त्रोत का पाठ कैसे करें – शिव तांडव स्तोत्र का पूर्णत: लाभ लेने के लिए इसका विधिवत पाठ करना आवश्यक है –
- सर्वप्रथम तो अपने आसपास एक शांत और शुद्ध माहौल तैयार करें, जहाँ शोर-शराभा नहीं हो, इसके बाद आप एक पूजा कक्ष, मंदिर या आपकी प्राथमिकता के अनुसार किसी अन्य स्थान का चयन कर सकते हैं।
- इसके बाद आप शांतिपूर्वक बैठ जाएं और अपने मन को शुद्ध करें। ध्यान केंद्रित करें और शिवजी का ध्यान करें।
- अब शिव तांडव स्त्रोत का पाठ करने के लिए अपनी स्वर-तरंग में सुखद और शांत ताल में आरंभ करें। आप इसे अपनी प्राथमिकता और योग्यता के अनुसार स्थानिक भाषा में या संस्कृत में पाठ कर सकते हैं।
- पूरे स्त्रोत को एकबार में पूरा पढ़ने की कोशिश करें, परंतु यदि आपको पूरी स्त्रोत की लंबाई याद नहीं होती है, तो आप इसे ऊपर दिए गए स्त्रोत को पहले सरल भाषा में याद करे।
- जब आप स्त्रोत का पठ पूरा कर लें, तो अपने मन में शिवजी का आभार व्यक्त करें और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने की प्रार्थना करें।
- स्त्रोत पाठ के बाद, आप ध्यान को कुछ समय तक रखें और शांतिपूर्वक ध्यान अवस्था में बने रहें।
- शिव तांडव कब पढ़ना चाहिए?
ब्रह्ममुहूर्त के समय, जब सृष्टि की शुरुआत होती है और मन शांत और प्रभावशाली होता है, आप शिव तांडव का पाठ कर सकते है। यह आपको एक शक्तिशाली आरंभ देगा और आपकी दिनचर्या में एक आध्यात्मिक दृष्टिकोण जोड़ सकता है।
सूर्यास्त के समय (प्रदोष काल) जब दिन का कार्य समाप्त होता है और शांति की वातावरण बनती है, आप शिव तांडव का पाठ कर सकते है। इससे आप दिन के थकान में अपने मन को शांत करके आध्यात्मिक अनुभव को स्थापित कर सकते हैं।
शिव तांडव स्तोत्र के फायदे –
- शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से भय से मुक्ति मिलती है, क्योंकि इस तांडव स्तोत्र में भगवान शिव के रूद्र रूप का बखान किया गया है।
- यदि आप पर किसी ने तंत्र मंत्र कर रखा हो तो आप नियमित शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करके इस समस्या से छुटकारा पा सकते हैं।
- शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से मन को शांति और स्थिरता मिलती है। यह मन को ध्यानावस्था में ले जाकर चिंताओं और तनाव से मुक्त करने में मदद करता है।
- शिव तांडव स्तोत्र के पाठ से आनंद और उत्साह की भावना जागृत होती है और आपकी मनोदशा को सकारात्मकता की ओर प्रवृत्ति करता है।
- इसका पाठ करने से आप महादेव की उपासना, भक्ति और ध्यान के माध्यम से आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त कर सकते हैं।
शिव तांडव स्तोत्र कैसे याद करें – शिव तांडव स्तोत्र को याद करने के यहाँ 5 टिप्स दिए गए है –
- सबसे पहले प्रत्येक श्लोक को अनेक खंडो में तोड़ ले, क्योंकि छोटे वाक्य हमें जल्दी याद होते है।
- प्रत्येक श्लोक को याद करने के लिए यह प्रक्रिया अपनाये – प्रथम दिन याद करने के बाद उसे तीसरे दिन उसको दोहराये, इसके बाद 7 वें दिन दोहराये, उसके बाद 15 वें और 30 वें दिन दोहराये। इस प्रकार वह श्लोक आपको हमेशा के लिए याद हो जाएगा।
- कोई भी सुनी हुई बात हमें जल्दी याद होती है, इसलिए शिव तांडव स्तोत्र को ऑडियो या विडिओ रूप में डाउनलोड करके उसे सेव कर ले और उसे दिनभर सुनते रहिये।
- यदि हम किसी चीज को समझकर याद करते है तो वह हमें जल्दी याद होती है अत: शिव तांडव स्तोत्र के प्रत्येक श्लोक का भावार्थ को समझकर उसे याद करे।
- यदि हम किसी पाठ को लिखकर याद करते है तो वो पाठ हमें जल्दी और हमेशा के लिए याद हो जाता है इसलिए शिव तांडव स्तोत्र का लिखकर याद करने का अभ्यास करे।
शिव तांडव बोलना कैसे सीखे – शिव तांडव को बोलने के लिए उसका उच्चारण सही से आना चाहिए, इसके लिए जितना अभ्यास करो उतना कम है।
- आपके पास किसी योग्य गुरु या शिक्षक की मार्गदर्शन में इसका उच्चारण सीखना सबसे अच्छा होगा।
- आप इंटरनेट पर उपलब्ध ऑडियो या वीडियो उपकरण का सहारा ले सकते हैं, जिनमें शिव तांडव स्तोत्र का उच्चारण उपलब्ध होता है।
- शिव तांडव स्तोत्र का उच्चारण सही ढंग से करने के लिए ध्यान से शब्दों को सुने और सही ध्वनि उपयोग करने का प्रयास करें।
- मात्र एक बार पढ़कर समझने की कोशिश न करें, बल्कि श्लोक को छोटे अंशों में टूट कर पढ़ें और उन्हें याद करने की कोशिश करें।
- समय के साथ, आपका उच्चारण बेहतर होगा, इसलिए निरंतर प्रैक्टिस करते रहें और धीरे-धीरे आप इसका माहिर बन जाएंगे।
शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से पूरे शरीर को शांति मिलती है, मानसिक स्थिति में सुधार होता है, और आध्यात्मिक अवबोध होता है। इसे नियमित रूप से पाठ करके आप भगवान शिव के आशीर्वाद को प्राप्त कर सकते हैं और आपकी आध्यात्मिक उन्नति में मदद कर सकते हैं।
शिव तांडव स्तोत्र की पौराणिक कथा
शिव तांडव स्तोत्र की उत्पत्ति से सम्बंधित एक रोचक कथा है – रावण भगवान शिव का परम भक्त था। रावण के पास सोने की लंका थी जिस पर वो काफी घमंड करता था। एक दिन उसने सोचा की क्यों न अपने आराध्य देव भगवान शिव को लंका लाया जाये और उन्हें सोने को लंका दिखाई जाये। रावण अपने पुष्प विमान से कैलास पर्वत की रवाना हो गया। रावण कैलास पर्वत पर पहुँचकर सबसे पहले नंदी से मिला और बोला की देव के देव महादेव को मै लंका ले जाने के लिए आया हु। और नंदी से बोला आप कृपया करके उन्हें ध्यान से मुक्त कराये और मेरी बात उनसे करवाए। नंदी ने बोला की इस काम के लिए मै भगवान शिव के ध्यान में व्यगं नहीं डाल सकता। रावण इस बात को लेकर क्रोधित हो गया और बोला मै कैलाश पर्वत को ही लंका ले जाऊंगा। रावण ने नंदी की कोई बात नहीं मानी और कैलास पर्वत को उठाने के लिए अपना हाथ पर्वत के निचे डाला। लेकिन भगवान शिव ने अपने अंगूठे से कैलास पर्वत को दबाया जिस से रावण का हाथ फस गया और कई कोसिस करने के बाद भी नहीं निकला। इस प्रकार रावण ने भगवान शिव का रूद्र रूप पहली बार देखा। तब लंकापति रावण ने शिवजी को शांत करने और उन्हें प्रसन्न करने के लिए 17 श्लोको की रचना की जिन्हे शिव तांडव स्तोत्र कहते है। इस प्रकार रावण द्वारा शिव तांडव स्तोत्र का बखान करने पर ही शिव जी प्रसन्न हुए और रावण को दबे हुए पर्वत से बाहर निकला।
शिव तांडव स्तोत्र के चमत्कार शिव तांडव स्तोत्र एक प्रसिद्ध स्तोत्र है जो भगवान शिव की महिमा और महाशक्ति को वर्णित करता है। इस स्तोत्र के चमत्कारिक प्रभाव के बारे में कुछ लोगों की मान्यताएं हैं, जो उन्होंने अपने अनुभवों के आधार पर साझा की हैं। हालांकि, यह आपके आश्चर्यजनक या अद्वितीय फल की पूर्णता की गारंटी नहीं देता है और अच्छा होगा कि आप इनकी आधिकारिकता को ध्यान में रखें।
शिव तांडव स्तोत्र के चमत्कारिक प्रभाव कुछ ऐसे हो सकते हैं:
- शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से आपको मानसिक शांति की अनुभूति हो सकती है। इस स्तोत्र के मंत्रों का पाठ मन को शांत, स्थिर और ध्यानग्रस्त करने में सहायता करता है।
- शिव तांडव स्तोत्र के द्वारा भगवान शिव की कृपा प्राप्त की जा सकती है। यह स्तोत्र आपको आत्मिक संवाद में लाने और आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन के लिए शिव की आशीर्वाद प्राप्त करने में सहायता कर सकता है।
- कुछ लोग शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करके अपनी रक्षा और सुरक्षा में सुधार का अनुभव करते हैं। यह स्तोत्र नकारात्मकता, बुराई और आपत्तिजनक शक्तियों से रक्षा कर सकता है और सुरक्षा की अनुभूति प्रदान कर सकता है।”
शिव तांडव स्तोत्र के चमत्कारिक प्रभाव की विश्वासनीयता और यथार्थता को लेकर विचार करने के लिए यह अच्छा होगा कि आप गुरु या धार्मिक आदर्शों की मार्गदर्शन से सहायता लें। ध्यान रखें कि भगवान की पूजा और स्तोत्र का पाठ ईमानदारी भावना से किया जाना चाहिए और किसी अनयायी उद्देश्य से नहीं।
शिव तांडव स्तोत्र के अंग्रेजी शब्दों में भाषांतरण
प्रिय भगवान शिव के भक्तों, आजकल के युवाओं को संस्कृत पढ़ने में कठिनाई हो सकती है, क्योंकि आजकल अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा दी जाती है। इसलिए यहां शिव तांडव स्तोत्र को अंग्रेजी शब्दों में दिया गया है, ताकि आप इसका पाठ कर भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न कर सकें और अपने मनोकामनाओं को पूरा कर सकें।
Jatatavigalajjala pravahapavitasthale
Galeavalambya lambitam bhujangatungamalikam
Damad damad damaddama ninadavadamarvayam
Chakara chandtandavam tanotu nah shivah shivam ||1||Jata kata hasambhrama bhramanilimpa nirjhari
Vilolavichi valarai virajamana murdhani
Dhagadhagadhagajjval lalalata pattapavake
Kishora chandrashekhare ratih pratikshanam mamah ||2||Dharadharendra Nandini Vilasabandhu Bandhura
Sphuradiganta Santati Pramodamanamanase
Krupakataksha Dhorani Nirudha-DurdharaPadi
Kvachidigambare Manovinodametu Vastuni ||3||Jata bhujangaPingala SphuratPhanamaniPrabha
Kadambakunkumadrava Pralipta Digva Dhumukhe
Madandha Sindhu Rasphuratva GutariyaMedure
Mano Vinodamadbhutam Bibhartu Bhuta Bhartari ||4||Sahasra Lochana Prabhritya Sheshalekha Shekhara
Prasuna Dhulidhorani VidhusaranGhripithaBhuh
Bhujangaraja Malaya Nibaddhajata Jutaka
Shriyai Chiraya Jayatam Chakora Bandhu Shekharah ||5||Lalata Chatvarajva Ladhanajnjaya Sphulingabha
Nipita Pajncha Sayakam Namannilimpa Nayakam
Sudha Mayukha Lekhaya Virajamana Shekharam
Maha Kapali Sampade Shirojata Lamastunah ||6||Karala Bhala Pattika Dhagaddhagaddhagajjvala
Ddhanajnjaya Hutikrita Prachanda Pajnchasayake
Dharadharendra Nandini Kuchagra Chitrapatraka
Prakalpanaika Shilpini Trilochane Ratirmama ||7||Navina Megha Mandali Niruddha Durdharasphurat
Kuhu Nishithinitamah Prabandhabaddha Kandharah
Nilimpanirjhari Dharastanotu KrIti Sindhurah
Kalanidhana Bandhurah Shriyam Jagaddhurandharah ||8||Praphulla Nila Pankaja Prapajncha Kalimprabha
Valimba Kanthakandali Raruchi Prabaddhakandharam
Smarachchidam Purachchidam Bhavachchidam Makhachchidam
Gajachchidandha Kachchidam Tamamtakachchidam Bhaje ||9||Agarva Sarvamangala Kala Kadamba Majnjari
Rasapravaha Madhuri Vijrumbhana Madhuvratam
Smarantakam Purantakam Bhavantakam Makhantakam
Gajanta Kandhakantakam Tamanta Kantakam Bhaje ||10||Jayatva Dabhravibhrama Bhramad Bhujangamaswas
Dwinirga Matkramasphuratkaral Bhaal Havyavaat
Dhimiddhimiddhimidhva Nanmrudanga Tungamangala
Dhvanikrama Pravartita Prachanda Tandavah Shivah ||11||Drushadvichitra Talpayorbhujanga Mauktikasrajor
Garishtha Ratnaloshthayoh Suhrudvi Paksha Pakshayoh
Trushnaravinda Chakshushoh Prajamahi Mahendrayoh
Samam pravritikah Kada Sadashivam Bhajamyaham ||12||Kada Nilimpa Nirjhari Nikujnja Kotare Vasanh
Vimukta Durmatih Sada Shirah Sthamajnjalim Vahanh |
Vimuktalola Lochano Lalama Bhala Lagnakah
Shiveti Mantramucharan Kada Sukhi Bhavamyaham ||13||Nilimpa Nathanagari Kadamba Maulamallika
Nigumpha Nirbhaksaranma Dhusṇika manoharah
Tanotu No Manomudam Vinodinim Mahanisam
Parisraya Param Padam Tadangajatvi Sanncayah ||14||Pracanda Vadavanala Prabhasubha Pracarani
Mahasta Siddhi Kamini Janavahuta Jalpana
Vimukta Vama Locano Vivaha Kalika Dhvanih
Siveti Mantrabhusago Jagajjayaya Jayatam ||15||Imam He Nityameva Muktamuttamottamam Stavam
Pathansmaran Bruvannaro Vishuddhimeti Santatam
Hare Gurau Subhaktimashu Yaati Naanyatha gatim
Vimohanam He Dehinam Sushankarasya Chintanam ||16||Puja Vasanasamaye Dashavaktra Gitam
Yah Shambhu Pujanaparam Pathati Pradoshhe |
Tasya Sthiraam Rathagajendra Turangayuktam
Lakshmim Sadaiva Sumukhim Pradadati Shambhuh ||17
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